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अनशन और आंदोलन के बावजूद भी बड़हिया स्टेशन को बार-बार किया जा रहा उपेक्षित

रेल ठहराव की समस्या से जूझ रहे बड़हिया प्रखंड वासियो के अच्छे दिन फिलहाल आते नहीं दिख रहे हैं। जन प्रतिनिधियों से उम्मीद की आस लगाए लोगों को जब सफलता हाथ नहीं लगी। तो समस्याओं से आहत और बुरी तरह प्रभावित लोगों के द्वारा बीते दिनों रेलवे की उपेक्षापूर्ण नीति के खिलाफ आधा दर्जन युवकों के द्वारा छह दिनों का आमरण अनशन भी किया गया।

जिलाधिकारी और रेलवे परिचालन से जुड़े पदाधिकारी द्वारा मिले आश्वासन पर आंदोलन के छठे दिन अनशन को समाप्त किया गया। आश्वासन मिला था कि 23 जनवरी से हॉल्ट पर ईएमयू का ठहराव और 25 जनवरी से एक नए पेशेंजर गाड़ी का परिचालन किया जाएगा।

आश्वासन के अनुसार एक दिन विलंब से ही सही पर 23 की जगह 24 जनवरी से डुमरी, गंगासराय, धीराडांर ज्वास होल्ट पर ईएमयू का ठहराव प्रारंभ हो गया। पर 25 तारीख से मिलने वाले नए पेशेंजर की सुविधा अभी तक नहीं मिल पाई है। विभाग की ओर टकटकी लगाए यात्रियों, दुकानदारों एवं परिचालन से प्रभावित लोगों को शनिवार को जोर का झटका तब लगा।

जब यह जानकारी हुई कि महीनों बाद आगामी दो फरवरी से पटरी पर लौट रहे भागलपुर-दानापुर इंटरसिटी, भागलपुर-मुजफ्फरपुर जनसेवा और भागलपुर-लोकमान्य तिलक सुपरफास्ट के लिए विभाग द्वारा जारी ठहराव में बड़हिया को स्थान नहीं दिया गया है। जानकारी फैलते ही जहां एक ओर आंदोलनकारी खुद को ठगा महसूस करने को मजबूर हो गए,

तो वहीं स्टेशन से जुड़े लोगों में रोष का माहौल रहा। सोशल साइटों पर रेलवे और स्पेशल के नाम पर केंद्र सरकार की नीतियों को टार्गेट किया गया। अनशन और आंदोलन के बावजूद सुविधा नदारद
युवाओं द्वारा जन प्रतिनिधियों की उदासीनता पर खूब व्यंग्य वाण दागे गए। हो भी क्यों नहीं! अन्य स्टेशनों पर पूर्ववत ठहराव रखे जाने के विपरीत इन दिनों परिचालित होने वाले सभी ट्रेनों के ठहराव से बड़हिया को ही वंचित किया जाना लोगों के समझ से परे है।

दैनिक रेल यात्री संघ के संयोजक कृष्णमोहन सिंह ने रेलवे की उपेक्षापूर्ण नीति को रेल परिचालन पर आश्रित मजदूर व व्यापारी वर्ग के लिए आत्महत्या करने को मजबूर करने वाला बताया।

तो वहीं बीते दिनों छह दिनों तक आमरण अनशन में शामिल रहे रामस्वारथ सिंह ने कहा कि वर्तमान दौर में गांधीवादी विचार धारा और अहिंसक शांतिपूर्ण आंदोलन का कोई औचित्य प्रतीत नही हो रहा। विभाग और सरकार द्वारा लोगों को उनके हक देने के बजाय उन्हें उग्र होने के लिए व्यग्र करने पर मजबूर करती है।

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